भारत के छोटे-छोटे गांवों में ऐसे कई छोटे-बड़े सपने पलते हैं, जिनके सपने देखने वाले आमतौर पर कभी शहर नहीं गए, न ही उन्होंने कभी बड़े संस्थानों या यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की। ऐसे ही एक छोटे से गांव का लड़का रोहित आज हजारों युवाओं के लिए प्रेरणा बन गया है। रोहित की कहानी उन सभी युवाओं के दिल को छू जाती है, जो संसाधनों की कमी के बावजूद अपने सपनों को पूरा करने की कोशिश करते हैं।
रोहित का जन्म उत्तर प्रदेश के एक सुदूर गांव में हुआ था। उनका परिवार बहुत ही साधारण था – उनके पिता खेती करते थे और उनकी मां घर संभालती थीं। घर में चार भाई-बहन थे और आमदनी इतनी ही थी कि बमुश्किल दो वक्त का खाना मिल पाता था। गांव में सिर्फ एक सरकारी स्कूल था, जहां रोहित ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। किताबें पुरानी थीं और शिक्षक नियमित रूप से नहीं आते थे, लेकिन रोहित में बचपन से ही पढ़ाई का जुनून था। रोहित के पास न स्मार्टफोन था, न इंटरनेट, न कोचिंग सेंटर। लेकिन उसके पास था – एक सपना और उसे पूरा करने का जुनून। उसने तय कर लिया था कि वह सरकारी नौकरी पाकर अपने परिवार की हालत बदलेगा। 12वीं पास करने के बाद रोहित ने अपने जिले के कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। दिन में खेतों में काम करना और रात में लालटेन की रोशनी में पढ़ाई करना उनकी दिनचर्या बन गई।
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सरकारी नौकरी
जब गांव के लड़के क्रिकेट या मोबाइल पर समय बिताते थे, तब रोहित रेलवे भर्ती, एसएससी और यूपी पुलिस भर्ती के पुराने पेपर हल करते थे। उनके पास न तो कोई गाइड था और न ही कोचिंग। वे पढ़ाई के लिए पास के शहर की लाइब्रेरी में जाते थे और वहां कुछ विद्यार्थी मित्रों से नोट्स लेते थे। इंटरनेट के लिए वे गांव के डाकघर में लगे पुराने कंप्यूटर की मदद लेते थे। जानकारी जुटाते, योजना बनाते और रोजाना 8-10 घंटे मेहनत करते।
कई बार असफल हुए। पहले प्रयास में वे रेलवे की परीक्षा एक नंबर से चूक गए। दूसरी बार वे एसएससी में फिजिकल टेस्ट से चूक गए। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। रोहित कहते हैं- “मुझे अपनी मेहनत पर भरोसा था, मैं जानता था कि चाहे मेरी परिस्थिति कैसी भी हो, मेरी लगन मुझे मेरी मंजिल तक जरूर पहुंचाएगी।”
आखिरकार 2024 में उनका चयन उत्तर प्रदेश पुलिस में कांस्टेबल के पद पर हुआ। जब रिजल्ट आया तो पूरा गांव ढोल बजाने लगा। उसका परिवार गर्व से भर गया और गांव के छोटे बच्चे उसे देखकर अब सरकारी नौकरी का सपना देखने लगे। रोहित की कहानी हमें बताती है कि अगर इरादे मजबूत हों तो संसाधनों की कमी आपको रोक नहीं सकती। अपनी पहली सैलरी से उसने अपने घर में बिजली लगवाई, अपनी बहन के लिए साइकिल खरीदी और अपने माता-पिता को शहर घुमाने ले गया। आज रोहित सिर्फ पुलिस कांस्टेबल नहीं है, वह गांव के युवाओं के लिए उम्मीद की किरण बन गया है।
सफलता की परीक्षा
वह अब हफ्ते में एक बार गांव के स्कूल में बच्चों को पढ़ाने जाता है और उन्हें बताता है कि मेहनत और लगन से क्या हासिल किया जा सकता है। रोहित की सफलता की असली कहानी यह नहीं है कि उसे नौकरी मिल गई, बल्कि यह है कि सीमित संसाधनों के बावजूद उसने हार नहीं मानी, लगातार संघर्ष किया और अपने गांव को एक नई दिशा दिखाई। सरकारी नौकरी पाना सिर्फ एक पद या सैलरी तक सीमित नहीं है, यह एक सम्मान है – खासकर उन युवाओं के लिए जो समाज के पिछड़े तबके से आते हैं।
रोहित जैसे लाखों युवाओं के लिए यह कहानी सिर्फ प्रेरणा नहीं बल्कि एक विश्वास है कि अगर एक गांव का लड़का बिना कोचिंग, बिना पैसे और बिना सुविधाओं के सरकारी नौकरी पा सकता है तो कोई भी पा सकता है – बस जरूरत है सपनों पर विश्वास रखने और उनके लिए पूरे दिल से मेहनत करने की।